सूरज ढल चुका है,शाम होने को है। हवाएं अपनी गति से मानो नाराज़ है,जिसके स्वभाव में गतिशीलता है जो आज शायद थक थक के कह रही हो की मुझे भी थोड़ा आराम करना है।आद्रता वातावरण में अपना साम्राज्य ऐसे बिछाए हुए है जैसे शुष्कता से उसका कोई पुराना बैर हो।सड़क पे चहलपहल कुछ ज्यादा हो गई है ठीक उसी तरह जैसे उषाकाल में पंछी अपने घोसलों की ओर प्रयाण करते है।आकाश में सुकून और बैचैनी का एक अलग ही मिश्रीत घोल फैला हुआ है क्योंकि नाही चैन का कोई जरिया दिख रहा है नाही बैचैनी का कोई ठोस कारण।
कभी कभी लगता है खालीपन कहीं खो सा गया है शायद हमें ज्यादा व्यस्त रहने की आदत सी हो गई है।इसे विरोधाभास कह सकते है या अतरंगी ख्याल की जब हम काम से बोज तले दबे पड़े रहते है तब हम एक तरह से उसे छूटना चाहते है,पर सच्चाई तो ये है कि कभी मौका मिलने पर यही खालीपन हमे डँसने लगता है।हमे ये एहसास अंदर से खाये जाता है कि हमारे पास करने को कुछ भी नही है।आराम का वो एहसास भी तभी सुखदायक होता है जब हम व्यस्तता से घिरे पड़े हो ठीक उसी तरह जैसे खाने का सही आनंद लेने के लिए भूख के अहेसास का होना जरूरी है।इन दोनों का सही मात्रा में समन्वय ही हमे अपने आप को सही महत्व देने में मदद करता है।
सड़क पे दौड़ती हुई कार जैसे फुटपाथ पे चल रहे आदमी को देखके हँस रही है कि ये कितना धीमा है।वही वो चलता हुआ राहगीर जो कि निवृत्त होकर हर शाम को टहलने आता है, उसे उस कार पर दया आ रही थी।वो हँसकर सोच रहा था की बेचारा आदमी इतनी जल्दी में जा रहा है कि उसके पास चैन से शाम के इस मस्त माहौल को देखने का वक्त ही नहीं है!!कितना विरोधाभास…यहाँ दोनो अपनी अपनी जगह सही भी है और गलत भी क्योंकि सब कुछ कितना सापेक्ष है।
इन सबको दूर से बैठकर एक लड़का बस निहारता जा रहा है,सोच रहा है अपनी विचक्षण बुद्धि पे थोड़ा जोर लगा रहा है,वो कोई फिलॉसॉफर नही है नाही कोई ज्ञानी पुरूष जो परमतत्व को जान गया हो।वो बस प्रयत्न करता रहता है हर चीज़ को अलग अलग आयाम से देखने का,उसे लगता है कि सत्य को पूर्ण रूप से नहीं जाना सकता पर उसे विश्वास है कि उसकी हर कोशिश उसको बौद्धिक विकास की और करीब ले जाती है।हाँ आपने बिलकुल सही सोचा वो लड़का और कोई नहीं मैं खुद ही अपनी कथनी कह रहा हूँ।
अभी रात को निशा बनने में देर है पर हवाएं बदल रही है, अपनी गति, दिशा दोनों,और धीरे से कान में एक संगीत घोल रही है।मानो मुझे कह रही है कि समय के साथ कुछ भी स्थायी नही है सब कुछ बदलता रहता है।तो बस इस मौजूदा पल को जियो क्या पता वो भी बदल जाए??
बादल में तिनका
तुम्हें शामों सा इतराना आता होगा,
तुम्हें मौसम को महकाना आता होगा।
जिक्र नहीं करते सरेआम यूँ बाजार में,
वरना हुनर हम भी रखते है जेबों में,
आसमां को आँखों में कैद करने का।